फिर से महक उठी मेरी सांसें
गजरे की खुशबू अभी वांकी है!
देख सकती है एक बार फिर तुझे मेरी आंखें..?
जिस्म में जान अभी वांकी है .....
फिर से उठ गयी मेरी पलके
सूरत यार की देखना अभी वांकी है!
देख सकती है एक बार फिर तुझे मेरी आंखें..?
जिस्म में जान अभी वांकी है .....
सोयी नहीं आंखे मेरी
अभी "खाव" तेरा देखना वांकी है!
देख सकती है एक बार फिर तुझे मेरी आंखें..?
जिस्म में जान अभी वांकी है .....
कब से बैठा हूँ राह में उसकी पलके बिछाये
एन रास्तों से उसका गुजरना अभी वांकी है!
देख सकती है एक बार फिर तुझे मेरी आंखें..?
जिस्म में जान अभी वांकी है ....
तुम्हे देख कर हर एक कलि का खिल जाना
तुम्हारा कोमल स्पर्श अभी बाकि है!
देख सकती है एक बार फिर तुझे मेरी आंखें..?
जिस्म में जान अभी वांकी है .....
खिलखिला उठी गुलाब की पंखुडियां
होठों पे टूट कर बिखरना अभी वांकी है!
देख सकती है एक बार फिर तुझे मेरी आंखें..?
जिस्म में जान अभी वांकी है ......
वो दोड़ कर आयेगी मुझे सीने से लगाने
कदमों की आहट सुनना अभी बाकि है!
देख सकती है एक बार फिर तुझे मेरी आंखें..?
जिस्म में जान अभी वांकी है ......
>बी.एस .गुर्जर<