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Tuesday, December 27, 2011

आज तक जीता तो कुछ नहीं .......

 
आज  तक जीता तो कुछ नहीं ,
पर हारने के लिए बहुत कुछ है

ले जा रहे हो हीरे, जबह्रात शोक से ले जाओ
असली दोलत तो मुझमे कैद है ...

माँ के आँचल के दूध  की मिठाश ,
माँ की लोरियों की गूँज अब तक मेरे कानों में है ...

आई बात अगर कभी उसे मुझसे चुराने की ,
ये गुनाह न करना ,,..?
क्योकि मेरी सांसे उसकी सांसों  में कैद  है
                                                           .                                                  
                                            ..                      .Gurjar....

Sunday, December 25, 2011

हर नगर ढुंढता हूँ ,हर डगर ढुंढता हूँ ....


हर नगर ढुंढता हूँ ,हर डगर ढुंढता हूँ
हर नगर ढुंढता हूँ ,हर डगर ढुंढता हूँ
कभी खुली पलकें ,तो कभी
 बंद पलकों से  ढुंढता हूँ
कभी रोगी तो कभी ,
जोगी बनकर  ढुंढता हूँ ..
मत पूछो मुझसे ,
किस तरह किस हाल  में ढुंढता हूँ...
खावोँ में ढुंढता हूँ,ख्यालों में ढुंढता हूँ
तुझे अपनों में  ढुंढता हूँ ,तुझे  परायों में  ढुंढता हूँ
कभी दिन तो ,कभी रातों को  ढुंढता हूँ
कभी गज़ल तो ,कभी गीतों में  ढुंढता हूँ ...
न जाने तुम खाव हो या हकीक़त ,
होकर दीवाना, दीवानों सा  ढुंढता हूँ ...
में तो इस जहाँ में सिर्फ तुम्हारे लिए आया हूँ
किस पल मिलोगी सिर्फ ,
इस आस  में जिंदा रह पाया हूँ
खाव देखें तुम्हारे संग जीने के ,
खाव सारे समेट लाया हूँ ...
में सिर्फ तुम्हारे लिए आया हूँ
में भी तुम्हारा इंतजार बनू ,
प्यार की न जाने, कितनी सोगात  लाया हूँ ...
तुम्हें अपने दिल में उतारने आया हूँ
जितना सच है सारा बताने आया हूँ
में तुझे खोने नहीं पाने आया हूँ ....
तेरी जुल्फों की छाव में सूरज ढले ,
में भी तेरी बाहोँ में सिमटे साथ तुम्हारे ,
ढलते सूरज को निहारने आया हूँ ...
कभी महसूश भी नहीं किया था, प्यार क्या होता है ....?
सुना है मीठा दर्द होता है,
में भी संग तुम्हारे इस दर्द में जीने  आया हूँ ..
तुम दरवाजे पर खड़ी मेरा इंतजार करो ,
तुम तड़फ उठो मेरे लिए ,हाँ में वो तड़फ बनने आया हूँ ..
तुम रूठो तो सही में तुम्हें मनाने आया हूँ
धड़कने तो दिल की मेरी भी रुक जाती है
तुम पास मेरे जब नहीं होती हो ,
वो ही धड़कने तुम्हें गिनवाने आया हूँ ..
ये आखिरी ख़त है मेरा ,सिर्फ तुम्हें समझाने आया हूँ
वही तुम्हारा इंतजार ,फिर से दोहराने आया हूँ .....
..Gurjar ...

Saturday, December 24, 2011

मुझसे ही मिलना चाहते हो ,...........



मुझसे ही मिलना चाहते  हो ,
मुझसे ही बिछड़ना चाहते हो....

नाम मेरा  खुद ही लिखते हो अपनी हथेली पे ,
और खुद ही मिटाते हो ....

हम तो सिर्फ तुम्हे चाहते है ,
पर न जाने तुम क्या चाहते हो .....

तुम सच  में मुझे भुलाना चाहते हो ,
या फिर युही बुद्धू बनाते हो ...

इस तरह हर पल दर्द देना अच्छी  बात नहीं,
दिल की बात तो बताओ मुझे ,जो मुझसे ही तुम छुपाते हो ...
.
जब तड़फ उडती हूँ ,तुम्हारे लिए ,
क्यों एक आवाज में दोड़े चले आते   हो .
..
फिर पूछती हूँ ये   क्या है ,?
तो रोते हुये क्यों सीने से लिपट जाते हो........
....Gurjar ...

Wednesday, December 14, 2011

तुम्हें गजल कह दूँ ,अच्छी बात ........

 
 
तुम्हें  गजल कह दूँ ,अच्छी  बात
तुम्हें  गुनगुनाना मुश्किल होगा.....

तुम्हें  खाव कह दूँ ,अच्छी बात
तुम्हें  आंखों में उतारना मुश्किल होगा .....

तुम्हें चांदनी कह दूँ ,अच्छी  बात
तुम्हारी रौशनी में भीगना मुश्किल  होगा ......

तुम्हें दिल कह दूँ ,अच्छी बात
मुझे धड़कन बनना मुश्किल होगा ....

तुम्हें रूप कह दूँ ,अच्छी बात
मेरा  दर्पण बनना  मुश्किल होगा......

 तुम्हें समुद्र  कह दूँ ,अच्छी बात
मेरा नदी बन पाना मुश्किल होगा .....

तुम्हें रव कह दूँ ,अच्छी बात
तुम्हें पूज पाना मुश्किल होगा ........
                                                                                        >>>>B.S.Gurjar<<<<

Sunday, December 11, 2011

में आज कल एक गजल लिख रहा हूँ .........




"गज़ल "

 में आज  कल एक गजल लिख रहा हूँ
 वीते हुए कुछ पल लिख रहा हूँ
तेरे चहरे को कमल ,जुल्फों को काली घटा लिख रहा हूँ
में आज  कल एक गजल लिख रहा हूँ ....

न दिन की खबर न रात की ,
हर पल की हर एक बात लिख रहा हूँ
में आज  कल एक गजल लिख रहा हूँ
 वीते हुए कुछ पल लिख रहा हूँ .......

'मोशकी' में डूबे शहर की कुछ कहानियां लिख रहा हूँ
घुंघरू की झंकार ,बिंदिया की चमक लिख रहा हूँ
में आज  कल एक गजल लिख रहा हूँ
 वीते हुए कुछ पल लिख रहा हूँ .......

महफ़िल से दूर वीराने में लिख रहा हूँ
भीगती  बरसात ,कड़कती धुप में लिख रहा हूँ
में आज  कल एक गजल लिख रहा हूँ
 वीते हुए कुछ पल लिख रहा हूँ .......

उसे चाँदनी ,खुद को चाँद लिख रहा हूँ
वो हुस्न  की चादर ओढ़े ,उसे चुपके -२ भीगे बदन देख रहा हूँ
में आज  कल एक गजल लिख रहा हूँ
 वीते हुए कुछ पल लिख रहा हूँ .......

होटों की नरमी ,दिल की चुभन लिख रहा हूँ
सिसकियाँ ,मुझपे गिरती बिजलियाँ लिख रहा हूँ 
में आज  कल एक गजल लिख रहा हूँ
 वीते हुए कुछ पल लिख रहा हूँ .......

मीठी सी चुभन ,मीठा सा दर्द लिख रहा हूँ
यादों से चुराये कुछ पल लिख रहा हूँ
में आज  कल एक गजल लिख रहा हूँ
 वीते हुए कुछ पल लिख रहा हूँ .......

वही झूंठी याद ,तेरा अहसाश लिख रहा हूँ
तेरी आंख से गिरे आँसू की तड़फ लिख रहा हूँ
में आज  कल एक गजल लिख रहा हूँ
 वीते हुए कुछ पल लिख रहा हूँ .......

भरी महफ़िल में  उदाश लिख रहा हूँ
तेरी कमी को होकर सर्मशार लिख रहा हूँ
में आज  कल एक गजल लिख रहा हूँ
यादों से चुराये कुछ पल लिख रहा हूँ ..........

होके मजबूर ,तुझ से दूर होकर लिख रहा हूँ
देख मेरी आंखों में , आंखें भर -२ लिख रहा हूँ
मरने के बाद भी प्यार, बेसुमार लिख रहा हूँ
में आज  कल एक गजल लिख रहा हूँ
 वीते हुए कुछ पल लिख रहा हूँ .............

>B.S.Gurjar<

Saturday, December 10, 2011

इस राज़ को राज़ रहने दो .....


इस राज़ को राज़ रहने दो
इस बात को बात रहने दो

कहना चाहते है दिल की बात ,
बात दिल की कहने दो ...
मत रोको दिले नादान को
नादानियाँ आज इसे करने दो ....

धुप सी खिली ....
  अचानक मिली  इस ख़ुशी को,
दामन में मेरे खिलने दो .....

क्यों मचाते हो शोर ....
.इस राज़ को राज़ रहने दो

कुछ पल और जीलुँ ... ..
यादों के संग उसके ...
कम से कम उसे ,
     मेरी यादों में रहने  दो                                                     
                                               B.S.Gurjar 

Wednesday, November 30, 2011

काहे जा बसे पिया परदेश........

 
काहे जा बसे पिया परदेश ...
बनी फिरुँ  बैरागन
झाँकूँ अपनी सुनी कुठरिया ....

हाय राम बने पिया परदेशी
और उस पे ये मोरी बाली  उमरिया....

काहे रुलाये मोहे
अब तो थक गयी आंखे ,
कब तुम लोटो मोरे साबरिया  ..

अब बिंदिया में वो बात नहीं
बिन तुम्हारे अंखियों में रात नहीं ...

थकी -२ अंखिया
पल -२ सोचों तोरी बतिया ....

निबुआ में खटास नहीं ,
सावन में बरसात नहीं ...

बिन तेरे मोरे पिया ,
लागे नहीं मोरा जिया ....

अब तो आ जाओ ,
छोड़ दी मैंने सांसे अपनी ,
अब तो लोट  भी आओ तो ,
 न सीने से लगा पाओ मोरे पिया .....   
                                                                >बी. एस .गुर्जर <

Monday, November 28, 2011

हम कभी कुछ कहते ........


हम कभी कुछ कहते 
कभी वो कुछ सुनते...

हर पल खाव आंखों  में कई बुनते
कभी हम खामोश,
तो वो कभी कुछ खाव आंखों में बुनते

जुबा खामोश ,
फिर भी न जाने क्यों कानों में
गीत उनके  गूंजते ...

इकरारे  मोहोब्बत..?
कभी हम उनसे
तो कभी वो हमसे करते .....

सीधे साधे लवों की अठखेलियाँ
न हम कुछ बोलते,
पर बात दिल की बंद होंठों से पड़ लेते ....

.चल दिये वो बाहोँ से ,
कुछ अंजाम मोहोब्बत कर देते

सोचा राहों में दिल हम बिछायेंगे
थोड़ी देर और काश वो हमसे लिपटते ....

कुछ नाम मोहोब्बत थी ,
कुछ अंजाम मोहोब्बत हम करते ,

हम तो सांसे नाम उनके करते ...
कुछ अंजाम मोहोब्बत हम करते ,

हम तो सांसे नाम उनके करते ....
इतनी भी क्या जल्दी थी ..
              कुछ पल और संग मेरे जी लेते ........  गुर्जर ....

Thursday, November 24, 2011

बे बजह ही शाम रंजिश में वीत गयी..........

 
 
   
बे बजह ही शाम रंजिश में वीत गयी
याद नहीं जिंदगी किस कश्मकश में वीत गयी...
.
सोचा जिन्दा रह जायेंगे इन यादों के सहारे
  फिसलती याद रेत की घरों में जा बसी...

एक झोंका आंसुओं का क्या गुजरा
सारी यादें बहा ले गया ...

क्या करते हम ,थोड़े समझदार बन निकले
वक़्त भी फिर ऐसी करवट लेकर आया
वो बन बैठे किनारा और हम एक मांझी निकले ..

वक़्त के सिरहाने वो एक किताब,
 यादों की दिल में उतार निकले .......

दिल हमसे हम दिल से
बातें कई हजार कर निकले.....

फिर सुनहरी यादों के सहारे
 कुछ गुनाहगार निकले.......

हकीक़त बन गए सारे सपने
फिर से यादों के गुब्बार निकले ,,,,

जहाँ हम एक जिन्दा लाश थे ....
वो हमरी जिंदगी का एक फरमान निकले .....

                                                                                        B.S.gurjar

Friday, November 4, 2011

न समझ थे वो..................

     

  न समझ थे वो
  या, हम उन्हें समझा न सके....

जमाने को सुनाई दे गयी धड़कने
जिसे सुनना  था उसे सुना  न सके.....

       पास आते गये
अहसाश न था दूर जाने का
        हुये जुदा तो....
दुबारा  करीब ला न सके.....

ख्वाहिश अपनों को अपनाने की थी
गैरों को हम अपना न सके .....

वीत गये मोषम जो लोट के आ न सके
चाह कर भी तुम्हे पा न सके ...

क्या गुजरी है दिल पे,
 न तुमने कभी पूछा
 न हम कभी बता  सके...

एक तस्वीर ही थी तुम्हारी
जो तकिये के नीचे
रख कर सोया करते थे ....
आज अश्क भर आये आंखों में तो
सायद हर एक लम्हा बता सकू.....

बदकिस्मती तो देखो मेरी ..?
बच गये सारे घरोंदे बहने से ..
हम अपना घरोंदा बहने से बचा न सके ...

होश आया तो हाथ में
तुम्हारी तस्वीर न थी
बह गयी जिंदगी हमारी
 उस पल तुम संभल सकते थे
                                             पर तुम संभाल न सके    
                                                                                                   >बी.एस .गुर्जर<

Tuesday, November 1, 2011

सुन लो अरज फरियादी........



सुन लो अरज फरियादी
की यमदूत जी
कुछ तो यमलोक 
मैं बदलाव करा दो!

    युग बदला , कुछ तो नया रास्ता बुझा दो
  मानव आज का योग्य नहीं 
इतना जीवन जीने को

तीस वर्ष की आयु बहुत है 
उमर इस की कम करा दो!
                                                      हिला के रख दो यमलोक   को
                                                     जरा मेरी  विनती पर गौर करा दो!
                                                      ख़त्म करो किस्सा विवाह का
                                                  मानव जाती पर अब रोक लगा दो
                                              मेरे इस विचार पर बैठक जल्दी लगा दो

                                                 अगर प्रस्ताव मेरा समझ  न आया हो
                                           तो चार जूती धना-धन सर पे जमा दो
                                             रोग दोष मानव के सारे अब मिटा  दो!
                                                  न करो और निराश हमें
                                           अब जल्दी से हमें रोबोटो बना दो!.....
                                                                                                          बी.एस .गुर्जर 

Thursday, October 27, 2011

वो रखते है चाँद ,तारे.....


वो रखते है चाँद ,तारे
छुपा के  दामन में

जाने खुद को क्या समझते है ...
दिखा के चाँद सूरत का

"चंद" तारे दामन में रखके
खुद को क्या समझते है ......

हमारी बेबशी तो देखो
रात भर देखते  रहे चाँद को  

 फिर भी तेरी सूरत की
एक झलक को तरसते हे ... 
                                                        B.S. Gurjar

Wednesday, October 19, 2011

दिया की बाती कजराई थी ............


दिया की बाती कजराई थी
वीत गयी वो शाम
वर्षो पहले आई थी.... 
माँ के हाथ की चुल्हे पे बनी
रोटी .खायी थी .....
जिंदगी वो ही  हँसीं थी
जो बरसो पहली पाई थी
आज इन रैत के डब्बों में
घुटन होती है ....
वीते कल में "बीजने" के
सहारे सारी रात बितायी थी .....
कुछ ताकत ही ऐसी थी
उस मिट्टी में ....
जिंदगी कितनी लम्बी पाई थी...
सुद्ध बातावरण कहाँ से लाये
मिलावटी चीजें जो .
 आज शोक से खायी है ..
क्यों रोते है आज हम
बीमारियाँ इतनी कहाँ से आई है
इंसानों ने ही दुनिया बनायीं थी ..
और इसानो ने ही मिटाई है ..........
                                                          >बी.एस .गुर्जर<

Sunday, October 16, 2011

अपने हो तूम पर ..............


अपने हो तूम पर 
लगते अजनवी हो....
स्वप्न हो तुम
पर न जाने क्यों..
हकीक़त लगते हो....
चंद अल्फाजों में 
फैसला मेरी जिंदगी 
  का करने वाले..
 कहते हो अपना 
पर लगते मुझे पराये हो.......
पूछते हो में कोन हूँ तुम्हारी ..?
और तुम मेरे क्या लगते हो.....
चलते हो तुम संग हाथ थामे 
     पर न जाने क्यों 
सिर्फ एक परछाई सी लगती हो....... 
बना के घरोंदा मेरे दिल में 
पर न जाने क्यों..
मुशाफिर बनी फिरती हो ........ 
क्यों मजबूर करती हो मुझे 
क्यों तुम मेरी मजबूरी बनती हो.....
चलना चाहती हो संग मेरे 
पर न जाने क्यों..
ज़माने से तुम डरती हो...
अक्सर तन्हाईयों में नाम मेरा लेके 
पर न जाने क्यों..
तुम आहें भरा करती हो .......
तुम तो मेरा अतीत थी 
पर न जाने क्यों.
 मेरा आज बनने की कोशिश करती हो........     
                                                           >बी.स .गुर्जर<

Saturday, October 15, 2011



पराये हुए अपने
ऐसे निभाए कुछ सपने
पलकों के दरमियाँ
उनकी मोहोब्बत की
   फिशलन थी........
अश्क  आये तो जगह न थी
      ठहराव की.......
छुपी थी  चांदनी रात
मेरी ही परछाई  में.....

वो तो बस उसकी बिंदिया
की एक परछाई थी........

होश न था हमें
बेतहाशा मोहोब्बत
 एक दूजे पे लुटाई थी ....

बिखरी थी चांदनी
कल  ज़मी पर
कल रात बिंदिया
उसने गिराई थी
रौशनी वो मेरे रकीव की थी
       जो कल रात सब को लुभाई थी ...... 
                                                                         >बी.एस .गुर्जर<

Sunday, October 9, 2011

उपवन सूने हें.......


उपवन सूने हें
  खावोँ  के दरमियाँ
सुनहरे पल बचे थोड़े हें
जोड़े थे संग सपने जिसके
वो तो खुद हताश हें 
जो कहते थे कभी मेरे हें....

बंधे थे जो कभी प्रीत की  डोर से
आज बन के चंद अफसाने
       करते वो मेरी गजलों में शोर हे..........

  झूम उठती थी जो वादीयाँ कभी
    देखकर मोहोब्बत हमारी
  आज रोती हे वही हंशी वादियाँ
     जिन्हें देखकर हम
      एक दूजे के बाहोँ में 
                 खिलखिला उठते थे ............

पूछकर ज़मी से देखा
कमी हमारी खलती हे
क्या.. तुमको भी,
मजबूर थी अश्क
अपने दिखा न सकी
ये भी एक मजबूरी थी
          दिल की दरारों को छुपा न सकी........

चाँद से पूछा ....
क्या तुम भी खुशनुमा चांदनी  रात
में हमारी कमी महसूश करते हो
इश्क की बातें जो तुम
 हमारी  सुना करते थे
टूट कर बिखर जाती थी
 चांदनी तुम्हारी बाहोँ में
जब इश्क उसे तुम
             मेरी तरह करते थे............

जब पूछा मेने मेरे दिल से
तुम कैसा महसूश करते हो
जबाव  दिल का ..
मेरी तो हर धड़कन में
 नाम उसका रहता  हे
 क्या तुम मेरा
          दर्द समझ सकते हो .........
                                                                                 .>बी .एस .गुर्जर<
.

Wednesday, October 5, 2011

यादों में जीना.....















पूछता हूँ तो बता देती है

रूठता हूँ तो मना लेती है!
                                                                                             
कुछ ऐसा ही बंध गया है                                                      
उसकी यादों से मेरा रिश्ता
एक पल भी तनहा नहीं रहने देती ..?

हर पल मेरी यादों में बसी रहती है
कोई भी शाम तनहा न गुजर जाये
बस हर दम यही सोचती रहती हे!

मेरी बिखरी जिन्दगी को                                                   
 हर पल वो समेटती रहती हे .
कितनी दूर चली गयी  हे  मुझसे ..?
सिर्फ  मेरी यादों में रहती हे!

में गुजरता हूँ उसकी यादों से
बस कुछ हसीं पलों का हिसाब करती रहती हे
मुझे तो उसकी हर एक अदा हसीं लगती हे!

में सिकायत नहीं करता कभी जिन्दगी से
      खामोश 'वीता'करती हे
.मैंने पायी हे जमाने  की सारी खुशियाँ
वो हर एक पल मेरी यादों में रहती हे!

Monday, October 3, 2011

कसक उठती है व सर्त उठती है ......

                                                   
                                               कसक उठती है वसर्ते उठती है
                                  तमन्ना बे वक़्त मचल उठती है!


                               हया के  दरवाजों में अब कुंडी नहीं है
                               वक़्त बे वक़्त तमन्ना दोड़ उठती है!

                                 बुझ जाते है चराग उल्फत के
                                जब होके फ़ना मोहोब्बत ...?                                     
इश्क की गलियों से  गुजरती है!

                            हया के  दरवाजों में अब कुंडी नहीं है
                            वक़्त बे वक़्त तमन्ना दोड़ उठती हे
!.....

                                                                     >B.S.Gurjar<

Thursday, September 29, 2011

मेरी आँख क्या लगी......

                                 

                                          मेरी आँख क्या लगी
                              जिन्दगी कहाँ थी कहाँ पहुच गयी
                               जब डर कर बाहर  आया सपने से
                                   मेरी तो रूह  तक कांप गयी!

                                ये कैसी झपकी लगी जो बात
                                      भविष्य की हो गयी
                         गुजार दिए जो १० साल क्या हासील हुआ
                              बात आने बाले १० सालों की हो गयी!

                            स्त्रियों के तन पे कपड़ों की कमी ऐसा लगा
                            मनो अधिक वस्त्र पहनने पे रोक लग गयी!

                                  बात पुर्षोँ की ..? ...मानों यूँ लगा
                                 किसी  ने किडनी गवाई दारू में तो
                                  किसी के फेफड़े सिगरेट चूश गयी!

                              चार दिन की चांदनी में अपनों को भूल गयी
                                 बेच डाला  दारू की एक बोतल  के लिए
                    उसी ने तुझको ,,,?जिसके लिए तू अपनों से दूर गयी
                     क्यों की बेटी पैदा हाय राम मेरी तो किस्मत फूट गयी!.
                                                                                                  >B.S.Gurjar<

Wednesday, September 28, 2011

लोग हँसते है मुझपे ................

                                                 
                                                      लोग हँसते  है मुझपे 
                                            न जाने कैसे मेरे मंसूवे  लगते है!
                                         चले जाते है न जाने किस की तलाश में 
                                                    फिर भी ठहरे से लगते है!

                                                  कदमों की हालत न पूछो..?
                                               जब गुजरते है उनके दवीचोँ से 
                                              हर एक कदम ठहरे से लगते हे!

                                              वे हिसाब थी उनकी वो स्याही ख़त
                                                लाख मिटने से  मिटते नहीं  हे!
                                            जब भी करते हैं  उन्हें तन्हाईयो में याद 
                                      नजरें चुराये आज भी हम उनके ख़त पड़ते है!

                                              कभी सीने से लगते हें खातों को 
                                                  तो कभी बार -२  चूमते  हें!
                                               मत पूछो  उस पल का आलम 
                                                   किस कदर झूम उठते है!

                                        टूट कर बिखर जाता हे आइना यादों का 
                                                       जब समझ आता हे
                                     क्यों हम आइनों में अपनी जिन्दगी खोजते  है!             

                                                                                               >बी.एस .गुर्जर<

Thursday, September 22, 2011

वो किताबों का मोह................

                                    

                                              वो किताबों का मोह दिन रात..?
                                            न जाने किसको खोजती रहती हूँ!

                                            अजीब से उलझन बनी रहती है
                                        न जाने किस जहाँ में खोयी रहती हूँ!

                                        कभी -२ वो निकल आते है किताबों से ..
                                                  देख कर मुझे इस हाल में
                                                पूछते है  तुम क्या चाहती हो ...
                                         में अब न रहा क्यों आज भी मेरे 'लेख'
                                                   तुम सीने से लगाती हो ...

                                       जब उछलते है मेरे 'लेख' तुम्हारे  लवों पे
                                         मेरे अश्कों की लहर सी बन जाती है


                                            सोचता हूँ वो कोनसी सिहाई थी
                                                तुम्हारी मोहोब्बत की जो
                                               मिट के भी मिट नहीं पायी है ....
                                                  जी रही हो आज भी तुम
                                                मेरे लेख सीने से लगाये...

                                         में आऊंगा एक बार तुम्हे  सीने से लगाने
                                    अभी   तुम्हे पुरुस्कृत करना वाकी है ...
                                                                                                    >बी .एस .गुर्जर<

Monday, September 19, 2011

रूप स्वर्ण सा मन नीर सा.....

                                                       
                                                         रूप स्वर्ण सा मन नीर सा 
                                                      छलकता योवन लगे खीर सा!

                                             मन का  तोल मन का मोल लगे ढील सा  
                                               दिल में चुभोये योवन हजारों लगे तीर सा

                                                       रूप स्वर्ण सा मन नीर सा 
                                                      छलकता योवन लगे खीर सा!

                                                        डगर भुलाये पथीक भटके 
                                                     ज्यो -२ योवन  निखरता जाये !

                                                        सो -२ नमन देवताओँ को 
                                                      बिनती जो मेरी मान  जाये!

                                                      में चाहू जिस सांचे में ढालना 
                                                        वो उस सांचे में ढल जाये!

                                                        प्रीत हो अगर सांची मेरी 
                                                    वो गीत मेरे संग प्रीत के  गाये!

                                                      थाली लेकर खड़ी द्वार पे माँ 
                                                    संग असुंअन के आस लगाये!

                                                 ये 'गुर्जर' बाँध ले बंधन सो जन्मो के 
                                               अगर वो इस युग में  "सीत" बन जाये!....... 

                                                                                             >बी.एस .गुर्जर<


Friday, September 16, 2011

फिर से महक उठी मेरी सांसें ....

                                                     

                                                       फिर से महक उठी मेरी सांसें 
                                                     गजरे की खुशबू अभी वांकी है! 
                                           देख सकती है एक बार फिर तुझे मेरी आंखें..?
                                                     जिस्म में जान अभी वांकी  है .....

                                                        फिर से उठ गयी मेरी पलके 
                                                   सूरत यार की देखना अभी वांकी  है!
                                            देख सकती है एक बार फिर तुझे मेरी आंखें..?
                                                     जिस्म में जान अभी वांकी  है .....

                                                           सोयी नहीं आंखे मेरी 
                                                      अभी "खाव" तेरा देखना वांकी है!
                                           देख सकती है एक बार फिर तुझे मेरी आंखें..?
                                                     जिस्म में जान अभी वांकी  है .....

                                            कब से बैठा हूँ राह में उसकी पलके बिछाये  
                                            एन रास्तों से उसका गुजरना अभी वांकी है!
                                           देख सकती है एक बार फिर तुझे मेरी आंखें..?
                                                  जिस्म में जान अभी वांकी  है ....

                                                                   

                                             तुम्हे देख कर हर एक कलि का खिल जाना 
                                                तुम्हारा कोमल स्पर्श अभी बाकि है!
                                          देख सकती है एक बार फिर तुझे मेरी आंखें..?
                                                  जिस्म में जान अभी वांकी  है .....
     
                                            खिलखिला उठी गुलाब की पंखुडियां
                                             होठों पे टूट कर बिखरना अभी वांकी है!                 
                                        देख सकती है एक बार फिर तुझे मेरी आंखें..?
                                               जिस्म में जान अभी वांकी  है ......


                                          वो दोड़ कर आयेगी मुझे सीने से लगाने  
                                            कदमों की आहट सुनना अभी बाकि है!
                                         देख सकती है एक बार फिर तुझे मेरी आंखें..?
                                               जिस्म में जान अभी वांकी  है ......         

                                                                                              >बी.एस .गुर्जर<


Monday, September 12, 2011

मत ढूढना मुझे मेरे बाद .........

                                             
                                                   मत ढूढना मुझे मेरे बाद
                                               में तो हर पल जिन्दा यहाँ हूँ .....

                                               किस कोने में  बैठी है मोत
                                          हर एक पल संभल के चल रहा हूँ
                                      में अपनों से नहीं अपने आप से खफा हूँ

                                                मत ढूढना मुझे मेरे बाद
                                               में तो हर पल जिन्दा यहाँ हूँ

                                                पड़ लेना बस एक बार,
                                        मेरे अश्कों से सने मेरे लफ्जों को
                                      मेरे हर एक लफ्ज में जिन्दा यहाँ हूँ ...

                                                मत ढूढना मुझे मेरे बाद
                                            में तो हर पल जिन्दा यहाँ हूँ ........

                                         जल कर राख हो गये सारे सपने
                                        फिर भी उम्मीद के अंगारों पे चल रहा हूँ

                                               लहू- लुहान हो गया हूँ
                                          फिर भी खुद ही उपचार कर रहा हूँ 
                                             किस कोने में  बैठी है मोत
                                           हर एक पल संभल के चल रहा हूँ

                             कोन कचेरी  है ये, किस जज से में गुहार कर रहा हूँ 
                                         क़त्ल किया मैंने खुसियों का
                                      में खुद का गुनाहगार बन रहा हूँ

                                        मत ढूढना मुझे मेरे बाद
                                        में तो हर पल जिन्दा यहाँ हूँ .....
..
                                            पड़ लेना बस एक बार,
                                       मेरे अश्कों से सने मेरे लफ्जों को
                                     मेरे हर एक लफ्ज में जिन्दा यहाँ हूँ
                                                                                             > बी.एस .गुर्जर<

Friday, September 9, 2011

मेरे स्वप्न अधूरे क्यों है .....

                                         
                                                          मेरे स्वप्न अधूरे क्यों है
                                                         मेरे लक्ष्य अधूरे क्यों है!

                                                          हर्ष उल्हाश का माहोल
                                                           चारों और..क्यों है
                                                         दुखी: आंखों में अश्क 
                                                 घर में 'चिल्लर' का शोर....क्यों है!

                                                         जाने अनजाने  ये सभी
                                                          माने कैसा ये दोर है...
                                                        क्यों गैरों के घर में झाँकू 
                                                   जब खुद मेरा बेटा ही  चोर है !

                                                  टूटे-फूटे  घुंगरू में भी कितना शोर है
                                                     न जाने मेरा सूरज किस और है!

                                                   नाप -तोल की सुई अटक गयी
                                                      न जाने ये कैसा तोल है!

                                                 मनुष्य जीवन एक बिडम्बना है
                                                  अब तो म्रत्यु का मोल है!......
                                                                                                  >बी.एस.गुर्जर <