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Sunday, May 29, 2011

कभी तो देखो हमें चहेरे से अपनी जुल्फें हटा के.......

       
                                      कभी तो देखो हमें चहेरे से अपनी जुल्फें  हटा के
                                            कभी तो टोंको हमें अपना बना  के! 
                                                                                                    
                                     हम तो कब से अपनी बाहे फैलाये बैठे हे 
                           एक बार तो गिरो तुम मेरी  बाहों में  अपनी जुल्फे बिखरा  के 
                         हमने सुना हे आपकी जुल्फों की छाव में  जन्नत का सकूं मिलता हे  
                                     हम तो हे इंतजार में कब हमें ये मोका मिलता हे !

                                            खनक चूडियों की मेरे कानो में कब गूंजेगी 
                                          खुसबू गजरे की कब मेरी बाहोँ में महकेगी !

                                      आज चली थी हवा बाते हवा ने तुम से हजार की  
                              कभी जुल्फे उलझाई तुम्हारी तो दुप्पटे के संग छेड-छाड़ की !

                                     उस  एक हवा के झोंके ने मुस्किल मेरी आसन की 
                                     हवा में लहराते दुपट्टे से हमने बाते तमाम की 
                            दिल की धड़कन अचानक इतनी तेज हो गयी ऐसा लगा 
                        मनो उसके दुपट्टे ने मेरे दिल से एक पल में बाते तमाम  की !

                  हमने दुपट्टा उनका क्या लोटाया उन्हें हमरी तो जान ही निकल गयी 
              स्पर्स हाथों से हाथो का ही नहीं हुआ ,,उनकी जुल्फें  भी मेरे चहेरे से लिपट गयी 
           तांकते रहे वो हमें और हम उन्हें यू लगा हम दोनों नैनो के भंबर में डूबते चले  गये 
              फिर होना क्या था हम खाव में थे और खाव में ही रह गये   ,, पवन गुर्जर ,,


Saturday, May 28, 2011

हे तेरा अक्स हर जगह .....

                                                      

                                                 भंबरे कि गुंजन में तुम  हो
                                               झरने की कलकल  में तुम हो ! 

                                             सावन की पहली फुहार में तुम हो  
                                         दूर बैठे उस मांझी के मल्हार में तुम हो !                 

                                            नाच रही गीत मिलन के गाते हुए 
                                     उस बिरहा के घुंगरू की झंकार में तुम हो!  

                                     बह के चमकती ओश की बूंदों की चमक में तुम हो
                                        भगवान् के भजन में तुम हो
                                         अल्लाह की नवाज में तुम हो !
                                     कोयल के मधुर आवाज  में तुम हो 

                           मस्त गगन में शोर मचाते पंछियोँ की चहचाहट  में तुम हो !
                                          मेने तो हर जगह तुम्हे  देखा हे
                             पर न जाने तुम किस खुमार में ग़ुम हो

                          कभी छूकर  तो देखो मुझे मेरे  दिल की हर धड़कन में सिर्फ तुम हो!

Thursday, May 26, 2011

Kaisi Banayi jodi Hamari ....

मुख मंडल की बात निराली खिली  हो कही सरसों और दिल में छा गयी हरयाली !
पहले पहल दीदार  हुआ निराला उसने कैद कर लिया जुल्फों में अपनी  लगा  दिया ताला 
पल्लू तो नहीं था सर पे पर था दुपट्टा छन्नी वाला देख रूप सुहाना हुआ में देवाना !
अचानक आ गया जुबान पर एक फिल्मी गाना , क्या खूब लगती हो बड़ी सुन्दर दिखती हो !
बात नैनो से हुई पहुच गयी सात फेरों तक ,आप जान ही गए होंगे क्या हुआ अभी तक  
       घोड़ी चड़ा तोरन लगाया ख़ुशी -२ आफत में आपने घर ले आया

 जम कर हुआ शोर गुल हर कोई जस्न मनाया, फिर मिला मोका दूध जलेबी का  हमने खूब लुत्फ़ उठाया  !
दिन गुजर गये कुछ दिनों के लिए वो हमसे दूर गये ,हम दूध जलेबी के चक्कर में खुद को भी खुल गये
चला सिलसिला कुछ ऐसा की अब तो जान के भी लाले पड़ गये ,लोग तो कहते थे बेटा तुम्हारे बारे न्यारे हो गये !
ताज महल अब तो उजड़ी इमारत लगता है ,सर पटक कर दीवार  पर  रोना अब  अच्छा  लगता हे 
बात -२ पर झगड़ा मुझे तो सब कुछ एक लफड़ा लगता हे ,दे दिया ढोल  टुटा फूटा जिसे ठीक कर  पाना मुस्किल लगता हे !
बात अच्छे पक्बानो की मत करो ,मुझे तो अब कांदे(प्याज ) से रोटी खाना  अच्छा  लगता हे 
दूर से तो बहुत देखा  सूरज को पर आज मालूम चला पास उसके रहकर पल -२ जलना पढता हे !
ये मेरी दास्ताँ नहीं हे मेरी समस्त कवी  बंधू  इस राह से हर एक को गुजरना पड़ता हे
इस लिए तो कहती हे मेरी कलम रब ने बिगाड दी जोड़ी हमारी -२ ....धन्यवाद ......(पवन गुर्जर )....




Wednesday, May 25, 2011

Pani re paani..........

पानी की हे सारी कहानी हो चाहे ठंड़ा चाहे हो गरम पानी !
    बालक भी  मांगे पानी बुढा भी मांगे हे पानी
                                    
      झांक रही हे धरा कब बरसेगा पानी
कसर बची थी थोड़ी बहुत आ गयी देखो  आज घर नानी !
घर- घड़ों से भरे पड़े हे  आपस में वो लड़ पड़े हे
 बिन पानी सब सूनो लागे एक घड़ा मोहे कोई पानी लादे
 गिरी पतोषर टूट के सारी घने वन मोहे उजड़े से लागे                         

   उड़ रही तालों से बालू प्यासा लोट गया भालू !

उड़े चिरैया खूब गगन में हो कही पानी की कोई पोखर

दिल भर हुयी खोज  पानी की  पर लोटना पड़ा उसे मायूश होकर !

>> पवन गुर्जर <<

Tuesday, May 24, 2011

Meri Saari Khusiyan Tujh se Hai .................

मेरी सारी खुशियाँ  तुझ से है ,मेरे सारे  सपने तुझ से है ये धरती तुझ से है वो आकाश तुझ से है ,मेरे होंटोँ की मुस्कान  तुझ से हे मेरे जिस्म में जान तुझ से हे ,कैसे रुठुँ तुझ से मेरे हर रिश्ते की पहचान तुझ से हे 
में क्या बात करूँ  मेरी माँ इस जहाँ की हर जहाँ तुझ से हे ,मेरी भूंख तुझ से हे मेरी प्यार तुझ से हे ,देखा नहीं मेने कभी उस रब को मेरा तो हर भजन तुझ से हे मेरी  तो हर अजान  तुझ से हे ,हाँ हे मुझे याद जब से आया  हूँ इस दुनियां में हर पल मेरे साथ तब से तू हे ,तेरी निगाह ने मेरी निगाह से रिश्ता ये कैसा बांधा हे ,अगर बंद करों 


 आँख तो इसमे तू हे अगर खुली रखूं आपनी आंख तो भी इसमे तू हे ,मेरी खुशीयों की एक बूंद तुझ से हे ,मेरी खुसियों का समुन्दर तुझ से हे ,पूछो उनके दिल से जरा उनके दिल पे क्या गुजरती होगी ,माँ के नाम पे बस उनके पास तन्हाई होगी , बदनसीब होते हे जिनके पास माँ नहीं होती हे ,आंसू तो रहते हे आँख में उनके पर उन्हें पोंछने  के लिए पास उनके माँ नहीं होती हे ,बिना उसके नाम के बेटे की पहचान कैसे हे , में किसी और की तो बात नहीं कर रहा माँ पर मेरे जिस्म का एक -२ कतरा तेरे नाम का हे  ,जब जी चाहे मांग लेना मुझसे मेरी माँ ये  मेरी जिंदगी तो तेरे नाम कब से हे ....... पवन गुर्जर ........

Saturday, May 21, 2011

Hann wo yahi tha moasam.........

मुझे ठीक से तो याद नहीं पर दिन था , वो घनी धुप उसके तन से लिपट -२ कर उसे सता रही थी  और वो बस मुझे घूरे जा रही थी ,हर पल मानो उसे वो धुप चिडाये जा रही थी , दूर एक घना पैड मुझे नजर आया ,पास जाकर देखा  तो आपनी अंखों पर मुझे यकीन ही नहीं आया ,फिर खिली उसके चेरे पर हशी ,कुछ तो सकूं आया ,वो खूब सूरत
 पैड था आम का और फिर ठंडी हवा का झोंखा हमरे करीब आया ,उसकी बाहोँ में जन्नत का मजा आया ,उसकी जुल्फों की छावां में पल कुछ इस तरह गुजरा की पता ही नहीं चला ,फिर उस सुनहरी धुप ने हमें घर की याद दिलाई  क्या हुआ यार में आपने घर चला गया  और वो आपने घर चली आई.........पवन गुर्जर ..........

Sunday, May 8, 2011

Beegi huyi thi uski ankhe...........



भीगी हुयी थी उसकी आंखे करनी थी मुझे तुमसे हजार बाते
न वो पल रुका न रुक सकी वो राते ,,
हाँ मुझे करनी थी तुमसे कितनी बाते

उठाये गम तुने कितने उठाये गम मैने कितने ,
पर न तू बदल सकी हालत ओर आती गयी क़यामत की कई रातें
कितनी सुन्दर थे वो दिन और कितनी सुन्दर थी वो राते
हाँ हमें और करनी थी उन से मोहोब्बत भरी कई बातें 

हाँ मैने सुनी थी उसकी सिसकियाँ उसने की थी मेरे दिल से कई बातें
हाँ मुझे और करनी थी तुमसे कई बातें...
न भुला सके वो हमें न भुला सके हम उन्हें,
कुछ ऐसी ही ऊल्झी हुयी थी हमारी सांसे..

हाँ हमने गुजार दी उसी अहसाश को लेकर दिल में ,
वो तमाम मोहोब्बत की तनहा रातें...
हाँ मुझे और करनी थी तुमसे कई बातें..
.
खुसबू मेहँदी की कुछ इस तरह महकी,
के मेरा सारे अरमा फनाह हो गये..
पर मैंने देखा था उसकी आँख से गिरती वो आंसु की एक बूंद,
उसी मेहँदी भरी हथेली पर उस पल हमें अहसाश हो गया,
हम तो तुझे खो कर भी पा गये...

भीगी हुयी थी उसकी आंखे करनी थी मुझे तुमसे हजार बातें..
न वो पल रुक सका न रुक सकी वो रातें..
हाँ मुझे करनी थी तुमसे कई बातें....   
                                                              B.S. gurjar ...

Friday, May 6, 2011

kitne gmm uthaye mene .......

kitne gmm uthaye mene har pal rahe khaw mere dare sahme , aayi kab yaad unki or kab hmm unhe bhule ,
dekha karte hai hai ragh unki hamm apni palke bicha kar kahi wo hamari rah to nahi bhule , yaad ka silsila khatam kahan hota hai kisi ne sach hi kaha hai jo dil lagata hai wo aksar rota hai ,par ek pal mai ess chere ki ronak kuch ess tarah bad jati hai mano lahre ke sang jindagi chali jati hai ,khamosh lavoan ka alam na pucho lave
 thirakne lagte hai or ankhe namm ho jati hai hann jab unki yaad aati hai, jhoka hawa ka  usko mera pegam dede mere halatoan ka koi pegam use dede ,jeene ke bahane to de na sake ek baar koi marne kla bahana dede, heran na hona mujhe mere sawaloan ka jawab dede ,hann jara sa karam mujh par kar de ,wo likhi thi hamne mohobbat ki dastan tere bahoan mai us har ek pal ka hisab dede ,kam se kam unn dino ka koi ek lamha to mere naam kar de.......pavan.gurjar