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Thursday, February 16, 2012

भीगा कुछ शाम का मंजर......( 100 ,post).....



भीगा कुछ शाम का मंजर
ख़यालात झांके कभी बहार
तो कभी अन्दर 

सूना मेरा गुरुद्वारा सूना मेरा मंदर
ये लहरे कैसी उठ रही है,
हेरान है आज खुद समंदर 

दर्द का पिटारा खोलूँ किसके सामने 
 सब तो लगा के दरबाजा घूश गए अंदर

लग जा गले से मेरे ऐ शाम ,
आज सोया है समुन्दर 

किरकिरी इन  आंखों  की,
 बही शाम के मंज़र...

ज़मी  की पुकार पे रोया आसमान पर ,
खामोश खड़ा रहा समुन्दर .....
        ...///..गुर्जर ..///...


Saturday, February 4, 2012

चलते भी जाना हे ...

 
 
चलते भी जाना हे
रुकते भी जाना हे..

कोई समझाये भी हमें ,
किसी को समझाना भी हे

कोई पास आये हमारे ,
किसी के पास जाना भी हे

कोई याद आया हमें ,
किसी को हमें याद आना भी हे 

किसी ने भुलाया हमें ,
किसी को हमें भुलाना भी हे

किसी ने मनाया हमें ,
किसी को हमें मनाना भी हे 

कोई ढूबा हे मेरी अन्खोँ में ,
किसी की अन्खोँ में ढूब जाना भी हे

मंज़िल वो भी ढूंढता हे अपने लिए,
मंज़िल तो मुझे भी पाना हे

सुबह का इंतजार कर रहा हे वो भी ,
एक रात और दिल को अपने बहलाना भी हे 

सुबह बाहोँ में टूटकर बिखरने को बेताब वो भी हे
काबू मेरा खुद पे रखपाना अब मुश्किल भी हे 

सोचता हे वो क्या ये सच हे
मेरा सपनो पे भरोषा करना मुश्किल भी हे .....

  ...//..गुर्जर..//...