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Monday, May 28, 2012

लोट आओ फिर दुनिया में मेरी ....

      
 ......गज़ल ........


लोट आओ फिर दुनिया में मेरी
तनहा हम जी नहीं सकते ......


कोशिसे तमान करते हे भुलादे तुमको
जीते जी हम तुम्हे भुला नहीं सकते ......


मेरी खुशियाँ तुझ से हे
बिन तुम्हारे गमों से हम दूर जा नहीं सकते ......


लोट आओ फिर दुनिया में मेरी
तनहा हम जी नहीं सकते ......


मोसम ए मोसम वीत जायेगा तनहा यूही
चाहते हुए भी हम तुम्हे सीने से लगा नहीं सकते .......


हम से  रूठो तो बात कुछ और हे तुम तो रूठे हो खुद से
हम चाहते हुए भी तुम्हे मना नहीं सकते .........


लोट आओ फिर दुनिया में मेरी
तनहा हम जी नहीं सकते ......


दुनिया मेरी खली हे तुझ बिन
किसी और को तुम्हारी जगह हम दे नहीं  सकते ....


रोते हे  हम तन्हायियोँ में अक्सर
जख्म दिल के हर किसी को बता नहीं सकते ......


लोट आओ फिर दुनिया में मेरी
तनहा हम जी नहीं सकते ...

./////...Gurjar..///...

Sunday, May 20, 2012

कहानी सात फेरों की .....;.................................



 जो रिश्ता तुम सम्भाल न सके
उस रिश्ते को जोड़ने  से क्या फायदा ...

क्यों लेते हो कसम सात जन्मों  की
मोल एक  जन्म  का ,भी  न जान सके
ऐसी कसमे खाने का क्या  फायदा .....

योबन , श्रिंगार तो   बहुत भाए
क्या मोल  उस श्रिंगार का
जो बढ़ो  का  लिहाज कभी किया ही   नहीं ......

क्या करों में इन उपाधियों का
पाठ परिवार में मिलजुल कर रहने का  कभी पढ़ा  ही नहीं ...... 
...Gurjar...

Saturday, May 5, 2012

मेरे चेहरे पे हशी न ढूंडो ......




मेरे चेहरे पे हशी न ढूंडो 
गमों से मेरा याराना है .....

मोहोब्बत में मिली दगा 
और दोस्तों ने दिया मुझे मैखाना है.....

बना बैठा में घर को अपने मेखाना
लोग कहते है मुझसे ये कोई दीवाना  है ....

अब तो हुआ बोतलों का शोर पुराना है

मुस्किल लगता जख्मों को सिल पाना है ...

..///..Gurjar..///..

Friday, May 4, 2012

वक़्त आया फिर एक ......

 
 
वक़्त आया फिर एक तस्वीर खूबसूरती की लेकर ..
लम्हे बेताब हे  युही तनहा गुजर जाने को ....

पहली फुहार जाने किस लम्हे की याद लायी
कुछ अधूरे पन्ने सिहाई के जो मुहताज  थे 

गुजारिश आज फिर से कर रहे हे
की तुम्हे सावन  की पहली फुहार में 
फिर से एक बार आपने गीतों में ढालूँ.....
///...Gurjar ..///

Thursday, May 3, 2012

सुबहा का आलम न जाने.......



सुबहा का आलम न जाने
फिजाओं  में ये कैसा रंग घुल सा गया हे...

बे हिसाब से पंछीयों की चह -चाहट
मन की प्रसन्नता का राज़ खोल रही सुनहरी धुप ....

मेने अपना ठिकाना बदला नहीं ...
दिल की अंजुमन में फिर वही खलिश वाकी हे  

उठा के पलकों से सोदे मोहोब्बत के कर ले
खुले आसमान में हमकदम मुझ चुन ले ....

यकी हो तो आजमाउं पहले खुद पे तो भरोशा कर लूँ
डर जाती हूँ  खुद ही उन् सूखे पत्तों  के दरमियाँ 

यूं महसूश होता हे के तुम मेरे करीब से गुजरे हो .......
क्या मेरा अक्स उभरा हे 
जो ये हशी आलम गुनगुना रहा हे .....

.//..B.S.Gurjar ..//..