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Saturday, March 5, 2016

सोच

लोग हामेशा ही अपनी गालतीयो पर
पारदा ढालते हे ,
कभी अपनी गालती मान कर
तो देखो ,
फिर तुमहे कितना सकू मिलता हे ।

                      by .(B.S.Gurjar)

Thursday, August 23, 2012

निकले और भी कई बहाने.....

 
निकले और भी कई बहाने
 दिल अपना बहलाने के..

ढुढता हूँ बहाने फिर
उसके मोहोल्ले में जाने के ...

तकदीरों का भरोषा छोड़ा
कोशिश कर रहा हूँ
 तस्वीरों से उसकी दिल लगाने की ..

निकले और भी कई बहाने
दिल आपना बहलाने के ...

अपना ही जहाँ  छूटा
किसी अपने के चले जाने से
कोशिश कर रहा हूँ
मेरा खुद का जहाँ बनाने की ...
....Gurjar...

Monday, July 30, 2012

गिर के संभलना मुझे नहीं आता.......


गिर के संभलना मुझे नहीं आता
कोन सी करवट लूँ समझ नहीं आता ...

जग रोशन हे  ,
न जाने क्यों मेरे घर से ही अँधेरा नहीं जाता .....
बहुत समझता हूँ खुद को पर कुछ समझ नहीं आता
भूँखा सोया रहता हूँ में अपनी झोंपड़ी में ,
मुझे एक गिलाश पानी भी देने ,मेरा कोई अपना नहीं आता ....

माना मेरा शहर तो गुमनाम हे,
पर जानबूझ के भी मुझे कोई अपनाने नहीं आता ....

रात की ओखली में दिन का कोई पहर नहीं आता
 तडफता रहता हूँ अपने दर्द को सिरहाने रखकर ,
मुझसे मेरा दर्द वांटने मेरा कोई अपना नहीं आता .....

जब भी करता हूँ मुनाफे का सोदा,
कर्जदार मेरा कर्ज लोटने कभी वपिश नहीं आता .....

चंद सिक्कों की गूंज से मन बहला लेता हूँ ,
मुझे रुपयों की ढेर पे सोना नहीं आता ......
....B.S.Gurjar...

Friday, July 27, 2012

वो मुझे मेरी परछाई सी लगती हे ....


वो मुझे मेरी परछाई सी लगती हे ....
चुपके -२ वो मेरे दिल की धड़कने पड़ती हे ....

जरा सी नटखट जरा सी चुलबुली सी लगती हे
वो मेरे गाव की सोंधी मिट्टी सी लगती हे .....

वो मेरी परछाई सी लगती हे
जैसे नदियों के पानी में हिलोर सी लगती हे......

वो मेरे आँगन की मुंडेर सी लगती हे
खाली-२ आसमा में इन्द्रधनुष सी लगती हे....

जिसे में अपने कवितओं में पिरों सकूँ ,
वो मुझे ग़ालिब के चंद कीमती लफ्जों सी लगती हे....
वो मुझे मेरी परछाई सी लगती हे ....

....B.S.Gurjar ....

Sunday, June 17, 2012

शुकराना तेरा करूँ कितना ......



शुकराना तेरा करूँ  कितना
मेने न चाहा था कभी जितना ...

लगा के तिलक हर रोज
तुझे पूजा  था मेने कितना ...

आज भी मेरे दोनों हाथ खली हे
तुने ,मुझे दिया ही कितना ......

....B.S.Gurjar ...

Monday, May 28, 2012

लोट आओ फिर दुनिया में मेरी ....

      
 ......गज़ल ........


लोट आओ फिर दुनिया में मेरी
तनहा हम जी नहीं सकते ......


कोशिसे तमान करते हे भुलादे तुमको
जीते जी हम तुम्हे भुला नहीं सकते ......


मेरी खुशियाँ तुझ से हे
बिन तुम्हारे गमों से हम दूर जा नहीं सकते ......


लोट आओ फिर दुनिया में मेरी
तनहा हम जी नहीं सकते ......


मोसम ए मोसम वीत जायेगा तनहा यूही
चाहते हुए भी हम तुम्हे सीने से लगा नहीं सकते .......


हम से  रूठो तो बात कुछ और हे तुम तो रूठे हो खुद से
हम चाहते हुए भी तुम्हे मना नहीं सकते .........


लोट आओ फिर दुनिया में मेरी
तनहा हम जी नहीं सकते ......


दुनिया मेरी खली हे तुझ बिन
किसी और को तुम्हारी जगह हम दे नहीं  सकते ....


रोते हे  हम तन्हायियोँ में अक्सर
जख्म दिल के हर किसी को बता नहीं सकते ......


लोट आओ फिर दुनिया में मेरी
तनहा हम जी नहीं सकते ...

./////...Gurjar..///...

Sunday, May 20, 2012

कहानी सात फेरों की .....;.................................



 जो रिश्ता तुम सम्भाल न सके
उस रिश्ते को जोड़ने  से क्या फायदा ...

क्यों लेते हो कसम सात जन्मों  की
मोल एक  जन्म  का ,भी  न जान सके
ऐसी कसमे खाने का क्या  फायदा .....

योबन , श्रिंगार तो   बहुत भाए
क्या मोल  उस श्रिंगार का
जो बढ़ो  का  लिहाज कभी किया ही   नहीं ......

क्या करों में इन उपाधियों का
पाठ परिवार में मिलजुल कर रहने का  कभी पढ़ा  ही नहीं ...... 
...Gurjar...