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Saturday, May 21, 2011

Hann wo yahi tha moasam.........

मुझे ठीक से तो याद नहीं पर दिन था , वो घनी धुप उसके तन से लिपट -२ कर उसे सता रही थी  और वो बस मुझे घूरे जा रही थी ,हर पल मानो उसे वो धुप चिडाये जा रही थी , दूर एक घना पैड मुझे नजर आया ,पास जाकर देखा  तो आपनी अंखों पर मुझे यकीन ही नहीं आया ,फिर खिली उसके चेरे पर हशी ,कुछ तो सकूं आया ,वो खूब सूरत
 पैड था आम का और फिर ठंडी हवा का झोंखा हमरे करीब आया ,उसकी बाहोँ में जन्नत का मजा आया ,उसकी जुल्फों की छावां में पल कुछ इस तरह गुजरा की पता ही नहीं चला ,फिर उस सुनहरी धुप ने हमें घर की याद दिलाई  क्या हुआ यार में आपने घर चला गया  और वो आपने घर चली आई.........पवन गुर्जर ..........

3 comments:

  1. to tumne kya kiya na usne kuch na tumne usse kuch kaha.kuch chhedo rag ki woh v kuch kahne ko mujboor ho jaye.

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