डूबी आंखे कुछ अनसुनी अनकही बाते ,
बहा दी अस्कों में हमने जिंदगी की तमाम रातें !
फिर भी हे उलझन कैसे हो सांत मन,
, बस यू ही भिगो दी हमने तमाम रातें
, बस यू ही भिगो दी हमने तमाम रातें
कभी डूबे तो कभी उभरे कभी सूख गयी नदिया
तो कभी जम कर बर्षा पानी!
तो कभी जम कर बर्षा पानी!
सुन -२ कर दादी के मुह से वो अनगिनत कहानी
खबर ही नहीं हुयी कब लोट गया बचपन
और आ गयी जवानी!
और आ गयी जवानी!
रंग बिरंगी चादर ओड़े -वो भी आये हम भी आये
खिया मीचे दोड़े -२
खिया मीचे दोड़े -२
लुका छिपी अँखियाँ की डांट झपट अपनों की
उठ कर बैठ गया खटिया से मत पूछो
बात अँधेरी रातों के सपनो की !
बात अँधेरी रातों के सपनो की !
touchy
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