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Monday, July 30, 2012

गिर के संभलना मुझे नहीं आता.......


गिर के संभलना मुझे नहीं आता
कोन सी करवट लूँ समझ नहीं आता ...

जग रोशन हे  ,
न जाने क्यों मेरे घर से ही अँधेरा नहीं जाता .....
बहुत समझता हूँ खुद को पर कुछ समझ नहीं आता
भूँखा सोया रहता हूँ में अपनी झोंपड़ी में ,
मुझे एक गिलाश पानी भी देने ,मेरा कोई अपना नहीं आता ....

माना मेरा शहर तो गुमनाम हे,
पर जानबूझ के भी मुझे कोई अपनाने नहीं आता ....

रात की ओखली में दिन का कोई पहर नहीं आता
 तडफता रहता हूँ अपने दर्द को सिरहाने रखकर ,
मुझसे मेरा दर्द वांटने मेरा कोई अपना नहीं आता .....

जब भी करता हूँ मुनाफे का सोदा,
कर्जदार मेरा कर्ज लोटने कभी वपिश नहीं आता .....

चंद सिक्कों की गूंज से मन बहला लेता हूँ ,
मुझे रुपयों की ढेर पे सोना नहीं आता ......
....B.S.Gurjar...

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