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Friday, July 27, 2012

वो मुझे मेरी परछाई सी लगती हे ....


वो मुझे मेरी परछाई सी लगती हे ....
चुपके -२ वो मेरे दिल की धड़कने पड़ती हे ....

जरा सी नटखट जरा सी चुलबुली सी लगती हे
वो मेरे गाव की सोंधी मिट्टी सी लगती हे .....

वो मेरी परछाई सी लगती हे
जैसे नदियों के पानी में हिलोर सी लगती हे......

वो मेरे आँगन की मुंडेर सी लगती हे
खाली-२ आसमा में इन्द्रधनुष सी लगती हे....

जिसे में अपने कवितओं में पिरों सकूँ ,
वो मुझे ग़ालिब के चंद कीमती लफ्जों सी लगती हे....
वो मुझे मेरी परछाई सी लगती हे ....

....B.S.Gurjar ....

2 comments:

  1. सुरमयी लेखनी ...बहुत खूब

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  2. कोमल भावो की अभिवयक्ति.....

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