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Saturday, October 15, 2011



पराये हुए अपने
ऐसे निभाए कुछ सपने
पलकों के दरमियाँ
उनकी मोहोब्बत की
   फिशलन थी........
अश्क  आये तो जगह न थी
      ठहराव की.......
छुपी थी  चांदनी रात
मेरी ही परछाई  में.....

वो तो बस उसकी बिंदिया
की एक परछाई थी........

होश न था हमें
बेतहाशा मोहोब्बत
 एक दूजे पे लुटाई थी ....

बिखरी थी चांदनी
कल  ज़मी पर
कल रात बिंदिया
उसने गिराई थी
रौशनी वो मेरे रकीव की थी
       जो कल रात सब को लुभाई थी ...... 
                                                                         >बी.एस .गुर्जर<

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