Text selection Lock by Hindi Blog Tips

Wednesday, October 19, 2011

दिया की बाती कजराई थी ............


दिया की बाती कजराई थी
वीत गयी वो शाम
वर्षो पहले आई थी.... 
माँ के हाथ की चुल्हे पे बनी
रोटी .खायी थी .....
जिंदगी वो ही  हँसीं थी
जो बरसो पहली पाई थी
आज इन रैत के डब्बों में
घुटन होती है ....
वीते कल में "बीजने" के
सहारे सारी रात बितायी थी .....
कुछ ताकत ही ऐसी थी
उस मिट्टी में ....
जिंदगी कितनी लम्बी पाई थी...
सुद्ध बातावरण कहाँ से लाये
मिलावटी चीजें जो .
 आज शोक से खायी है ..
क्यों रोते है आज हम
बीमारियाँ इतनी कहाँ से आई है
इंसानों ने ही दुनिया बनायीं थी ..
और इसानो ने ही मिटाई है ..........
                                                          >बी.एस .गुर्जर<

3 comments: