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Friday, November 4, 2011

न समझ थे वो..................

     

  न समझ थे वो
  या, हम उन्हें समझा न सके....

जमाने को सुनाई दे गयी धड़कने
जिसे सुनना  था उसे सुना  न सके.....

       पास आते गये
अहसाश न था दूर जाने का
        हुये जुदा तो....
दुबारा  करीब ला न सके.....

ख्वाहिश अपनों को अपनाने की थी
गैरों को हम अपना न सके .....

वीत गये मोषम जो लोट के आ न सके
चाह कर भी तुम्हे पा न सके ...

क्या गुजरी है दिल पे,
 न तुमने कभी पूछा
 न हम कभी बता  सके...

एक तस्वीर ही थी तुम्हारी
जो तकिये के नीचे
रख कर सोया करते थे ....
आज अश्क भर आये आंखों में तो
सायद हर एक लम्हा बता सकू.....

बदकिस्मती तो देखो मेरी ..?
बच गये सारे घरोंदे बहने से ..
हम अपना घरोंदा बहने से बचा न सके ...

होश आया तो हाथ में
तुम्हारी तस्वीर न थी
बह गयी जिंदगी हमारी
 उस पल तुम संभल सकते थे
                                             पर तुम संभाल न सके    
                                                                                                   >बी.एस .गुर्जर<

3 comments:

  1. उस पल तुम संभल सकते थे,पर तुम संभल न सके..... बहुत अच्छी रचना....

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  2. B.S GURJAR JI AAP KI YE RACHNA DIL KO CHHU GAYI....SACH ME. IS KHOOBSURAT ABHIVYAKTI KE LIYE BADHAYI.

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