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Thursday, November 24, 2011

बे बजह ही शाम रंजिश में वीत गयी..........

 
 
   
बे बजह ही शाम रंजिश में वीत गयी
याद नहीं जिंदगी किस कश्मकश में वीत गयी...
.
सोचा जिन्दा रह जायेंगे इन यादों के सहारे
  फिसलती याद रेत की घरों में जा बसी...

एक झोंका आंसुओं का क्या गुजरा
सारी यादें बहा ले गया ...

क्या करते हम ,थोड़े समझदार बन निकले
वक़्त भी फिर ऐसी करवट लेकर आया
वो बन बैठे किनारा और हम एक मांझी निकले ..

वक़्त के सिरहाने वो एक किताब,
 यादों की दिल में उतार निकले .......

दिल हमसे हम दिल से
बातें कई हजार कर निकले.....

फिर सुनहरी यादों के सहारे
 कुछ गुनाहगार निकले.......

हकीक़त बन गए सारे सपने
फिर से यादों के गुब्बार निकले ,,,,

जहाँ हम एक जिन्दा लाश थे ....
वो हमरी जिंदगी का एक फरमान निकले .....

                                                                                        B.S.gurjar

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