काहे जा बसे पिया परदेश ...
बनी फिरुँ बैरागन
बनी फिरुँ बैरागन
झाँकूँ अपनी सुनी कुठरिया ....
हाय राम बने पिया परदेशी
और उस पे ये मोरी बाली उमरिया....
काहे रुलाये मोहे
अब तो थक गयी आंखे ,
कब तुम लोटो मोरे साबरिया ..
अब बिंदिया में वो बात नहीं
बिन तुम्हारे अंखियों में रात नहीं ...
थकी -२ अंखिया
पल -२ सोचों तोरी बतिया ....
निबुआ में खटास नहीं ,
सावन में बरसात नहीं ...
बिन तेरे मोरे पिया ,
लागे नहीं मोरा जिया ....
अब तो आ जाओ ,
छोड़ दी मैंने सांसे अपनी ,
अब तो लोट भी आओ तो ,
न सीने से लगा पाओ मोरे पिया .....
>बी. एस .गुर्जर <
नई नवेली .....का विरह .....
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