भीगा कुछ शाम का मंजर
ख़यालात झांके कभी बहार
तो कभी अन्दर
सूना मेरा गुरुद्वारा सूना मेरा मंदर
ये लहरे कैसी उठ रही है,
हेरान है आज खुद समंदर
दर्द का पिटारा खोलूँ किसके सामने
सब तो लगा के दरबाजा घूश गए अंदर
लग जा गले से मेरे ऐ शाम ,
आज सोया है समुन्दर
किरकिरी इन आंखों की,
बही शाम के मंज़र...
ज़मी की पुकार पे रोया आसमान पर ,
खामोश खड़ा रहा समुन्दर .....
...///..गुर्जर ..///...
wah ..bhut khub..
ReplyDeleteवाह मन के भावों को शब्द दे दिए ... १०० पोस्टों की बधाई ...
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