चलते भी जाना हे
रुकते भी जाना हे..
रुकते भी जाना हे..
कोई समझाये भी हमें ,
किसी को समझाना भी हे
कोई पास आये हमारे ,
किसी के पास जाना भी हे
कोई याद आया हमें ,
किसी को हमें याद आना भी हे
किसी ने भुलाया हमें ,
किसी को हमें भुलाना भी हे
किसी ने मनाया हमें ,
किसी को हमें मनाना भी हे
कोई ढूबा हे मेरी अन्खोँ में ,
किसी की अन्खोँ में ढूब जाना भी हे
मंज़िल वो भी ढूंढता हे अपने लिए,
मंज़िल तो मुझे भी पाना हे
सुबह का इंतजार कर रहा हे वो भी ,
एक रात और दिल को अपने बहलाना भी हे
सुबह बाहोँ में टूटकर बिखरने को बेताब वो भी हे
काबू मेरा खुद पे रखपाना अब मुश्किल भी हे
सोचता हे वो क्या ये सच हे
मेरा सपनो पे भरोषा करना मुश्किल भी हे .....
...//..गुर्जर..//...
सच में मुस्किल तो है..... दिल को छू हर एक पंक्ति....
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