"सिर्फ एक दुआ मांगी है कबूल करना,
भूल से भी कभी ,मुझे मेरी माँ से दूर न करना,
छीन लेना मेरे जिस्म से एक -२ कतरा लहू का ,
पर भूल के कभी मुझे माँ से दूर न करना"
(बी.एस.गुर्जर)
Monday, October 3, 2011
कसक उठती है व सर्त उठती है ......
कसक उठती है वसर्ते उठती है
तमन्ना बे वक़्त मचल उठती है!
हया के दरवाजों में अब कुंडी नहीं है
वक़्त बे वक़्त तमन्ना दोड़ उठती है!
बुझ जाते है चराग उल्फत के
जब होके फ़ना मोहोब्बत ...? इश्क की गलियों से गुजरती है!
हया के दरवाजों में अब कुंडी नहीं है
वक़्त बे वक़्त तमन्ना दोड़ उठती हे !..... >B.S.Gurjar<
HAYA KE DARWAZO ME AB KUNDI NAHI HAI
ReplyDeleteWAQT BE-WAQT TAMANNA DAUD UTHATI HAI...
BAHOT HI UMDA PANKTIYA HAIN SIR...BAHOT KHOOB
bahut khub ....
ReplyDeletewaha bahut khub...
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