पराये हुए अपने
ऐसे निभाए कुछ सपने
पलकों के दरमियाँ
उनकी मोहोब्बत की
फिशलन थी........
अश्क आये तो जगह न थी
ठहराव की.......
छुपी थी चांदनी रात
मेरी ही परछाई में.....
वो तो बस उसकी बिंदिया
की एक परछाई थी........
होश न था हमें
बेतहाशा मोहोब्बत
एक दूजे पे लुटाई थी ....
बिखरी थी चांदनी
कल ज़मी पर
कल रात बिंदिया
उसने गिराई थी
रौशनी वो मेरे रकीव की थी
जो कल रात सब को लुभाई थी ......
>बी.एस .गुर्जर<
OH !! ashk aaye to jagah n thi thahraaw ki......bahut marmik ....
ReplyDeletereally beautifully written..
ReplyDeleteawesome expressions !!
SIr realy very deep n tuching lines...too good
ReplyDeleteदिल को छूती रचना....
ReplyDeletemon ko chu gayi yeh rachna
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