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Wednesday, May 25, 2011

Pani re paani..........

पानी की हे सारी कहानी हो चाहे ठंड़ा चाहे हो गरम पानी !
    बालक भी  मांगे पानी बुढा भी मांगे हे पानी
                                    
      झांक रही हे धरा कब बरसेगा पानी
कसर बची थी थोड़ी बहुत आ गयी देखो  आज घर नानी !
घर- घड़ों से भरे पड़े हे  आपस में वो लड़ पड़े हे
 बिन पानी सब सूनो लागे एक घड़ा मोहे कोई पानी लादे
 गिरी पतोषर टूट के सारी घने वन मोहे उजड़े से लागे                         

   उड़ रही तालों से बालू प्यासा लोट गया भालू !

उड़े चिरैया खूब गगन में हो कही पानी की कोई पोखर

दिल भर हुयी खोज  पानी की  पर लोटना पड़ा उसे मायूश होकर !

>> पवन गुर्जर <<

4 comments:

  1. उड़ रही तालों से बालू प्यासा लोट गया भालू !

    उड़े चिरैया खूब गगन में हो कही पानी की कोई पोखर

    दिल भर हुयी खोज पानी की पर लोटना पड़ा उसे मायूश होकर !

    waah pawan ji jhkjhor ker rakh diya aapne to
    maan gaye aapko

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  2. धन्यबाद अमर जी ...आपका स्वागत हे .... बस दिया हे उस रब ने तोफा अनमोल उसे ह्रदये से लगाये जिए जा रहे हे ,कभी आपनी तो कभी ज़माने की तस्वीर बनाये जा रहे हे .........

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