क्या कसूर हे एक बार अगर तुम बता दो
माना नहीं आता मुझे मुहोब्बत करना
प्यार जरा सा मुझ पे लुटा दो
क्या कसूर हे एक बार अगर तुम बता दो!
उन पल - उन लम्हों की कोई तस्वीर बना दो
रंग इस जहाँ के सारे चुरा लूँ
हो सका तो परियों की सलाह लूँ
रंग आसमान के सरे चुरा लूँ !
मोहोब्बत का आज इन्द्रधनुष बना लूँ
अगर तुम मेरे हाथों को एक बार 'सहला' दो !
जिन्दगी का हर एक "गम" में उस पल भुला दूँ
जब में तेरी मीठी -२ बातों को मेरे लवों पे सजा लूँ !
ये गजल मेने तुम्हारे लिए लिखी है
एक बार अगर तुम मेरी गजल गुनगुना दो
में ये जहाँ छोड़ दूंगा तुम्हारे लिए
सिर्फ एक बार तुम मुझे सीने से लगा लो!
'पथरा' गयी है आंखें इन्तजार में तुम्हारे
कोई एक पल -एक लम्हा मुझे बता दो!
कब आओगी सिर्फ एक बार बता दो
प्यार जरा सा मुझ पे लुटा दो!
क्या कसूर हे एक बार अगर तुम बता दो!....गुर्जर ...
amazing....
ReplyDeletebahut bhavpurna rachna hai...aapne ehsaaso ko shabdo me bahut acche se piroya hai .badhai
ReplyDeletebhaut hi sundar....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
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