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Sunday, December 25, 2011

हर नगर ढुंढता हूँ ,हर डगर ढुंढता हूँ ....


हर नगर ढुंढता हूँ ,हर डगर ढुंढता हूँ
हर नगर ढुंढता हूँ ,हर डगर ढुंढता हूँ
कभी खुली पलकें ,तो कभी
 बंद पलकों से  ढुंढता हूँ
कभी रोगी तो कभी ,
जोगी बनकर  ढुंढता हूँ ..
मत पूछो मुझसे ,
किस तरह किस हाल  में ढुंढता हूँ...
खावोँ में ढुंढता हूँ,ख्यालों में ढुंढता हूँ
तुझे अपनों में  ढुंढता हूँ ,तुझे  परायों में  ढुंढता हूँ
कभी दिन तो ,कभी रातों को  ढुंढता हूँ
कभी गज़ल तो ,कभी गीतों में  ढुंढता हूँ ...
न जाने तुम खाव हो या हकीक़त ,
होकर दीवाना, दीवानों सा  ढुंढता हूँ ...
में तो इस जहाँ में सिर्फ तुम्हारे लिए आया हूँ
किस पल मिलोगी सिर्फ ,
इस आस  में जिंदा रह पाया हूँ
खाव देखें तुम्हारे संग जीने के ,
खाव सारे समेट लाया हूँ ...
में सिर्फ तुम्हारे लिए आया हूँ
में भी तुम्हारा इंतजार बनू ,
प्यार की न जाने, कितनी सोगात  लाया हूँ ...
तुम्हें अपने दिल में उतारने आया हूँ
जितना सच है सारा बताने आया हूँ
में तुझे खोने नहीं पाने आया हूँ ....
तेरी जुल्फों की छाव में सूरज ढले ,
में भी तेरी बाहोँ में सिमटे साथ तुम्हारे ,
ढलते सूरज को निहारने आया हूँ ...
कभी महसूश भी नहीं किया था, प्यार क्या होता है ....?
सुना है मीठा दर्द होता है,
में भी संग तुम्हारे इस दर्द में जीने  आया हूँ ..
तुम दरवाजे पर खड़ी मेरा इंतजार करो ,
तुम तड़फ उठो मेरे लिए ,हाँ में वो तड़फ बनने आया हूँ ..
तुम रूठो तो सही में तुम्हें मनाने आया हूँ
धड़कने तो दिल की मेरी भी रुक जाती है
तुम पास मेरे जब नहीं होती हो ,
वो ही धड़कने तुम्हें गिनवाने आया हूँ ..
ये आखिरी ख़त है मेरा ,सिर्फ तुम्हें समझाने आया हूँ
वही तुम्हारा इंतजार ,फिर से दोहराने आया हूँ .....
..Gurjar ...

2 comments:

  1. कोमल भावो की बेहतरीन अभिवयक्ति.....

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  2. वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

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