आज निकली नहीं धूप सुबह से ही रिमझिम फुहार बरष रही है
आज बात नहीं हुयी उनसे न दीदार हुआ उनका
अँखियाँ उनके लिए तरश रही है!
निकले कैसे उनकी तलाश में हम घर से वो तो हमारे कभी थे ही नहीं
फिर क्यों उनके लिए अखियाँ पल -२ बरष रही है!
कोमल सा मन भोली सी अदा उनकी वो एक खाव सा लग रही है
उसे तो हम से मोहोब्बत थी ही नहीं फिर भी न जाने वो क्यों अपनी सी लग रही है
हाँ उसने कहा था मुझसे तुम्हारी तबियत ठीक सी नहीं लग रही है!
मुझे लगा वो मंदिरों में मेरे लिए प्रार्थना कर रही है
वो नादान हे उसे मोहोब्बत करना नहीं आता
मुझे रुला के वो खुद भी रो रही है!
वो पास थी ही कब मेरे जो मुझसे दूर हो रही है
न जाने किस खुमार में मधहोश हो रही है!
क्या एक बार भी नहीं बरष सकती वो फुहार बनके
ये मस्त शीतल पवन और कोयल की मधुर आवाज कुछ कह रही है!
आज बात नहीं हुयी उनसे न दीदार हुआ उनका
अँखियाँ उनके लिए तरश रही है! ............
बहुत ही खुबसूरत रचना...
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeletewoh hi toh ha jo ehsas bankar cha rahi ha... shukhe hue patton ki awaz nhi... uski dhmi si ahat ha..........tabhi dur hokar bhi sayad yado ko mehka rahi ha.
ReplyDeletepavan ji..... nice writing...........................
ReplyDelete