तुम कब आओगी
और भला मुझे कितना सताओगी
अब तो पछियों ने भी घोसले छोड़ दिए,
अब तो वो मस्त गगन में तन पे
हलकी हलकी फुहार लिए
रोज नादानियाँ किया करते है!
हाल हमारा न पूछो हम तो
हर दिन टूट कर भिखारते है!
तलाश में तुम्हारी दरबदर भटकते है
नजरे गड़ाये राह तुम्हारी देखा करते है!
अब बहुत हुआ अब तो बता दो तुम कब आओगी
अब और इन्तजार किया नहीं जाता
तस्वीर से तुम्हारी बाते करना अब नहीं भाता,
कही रुत ये प्यार की चली न जाये
तुम रह जाना बस दर्पण में
हमें साथ किसी और का न मिल जाये!
फिर रोते हुए अपनी जुल्फे झटक के मेरे आगे पीछे घूमना
तुम मुझे कभी न भूलना बरना में जी ते जी मर जाउंगी
तुम क्या सोचते हो तुम से में दूर चली जाउंगी
फिर तो रात दिन में तुम्हारी बाहोँ में मर के भी जी जाउंगी!
मत रूठो मेरे साजन तुम
अपनी कलम तो रोको में तो कब से तुम्हारे पास बैठी हूँ
बरना में अब चली जाउंगी .......गुर्जर ...
सुंदर भाव...
ReplyDeleteब्लाग फॉलो भी कर लिया है....
दुल्हन से तुम्हारा मिलन होगा , ओ मन थोड़ी धीर धरो
ReplyDeleteबाहों में चांदी का बदन होगा , ओ मन थोड़ी धीर धरो
:)
प्रिय बंधुवर
सस्नेहाभिवादन !
अच्छी है आपकी रचना … समापन सुखद हो गया तो हर भोगी हुई तक़लीफ़ अपने आप दूर समझें … :)
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
अच्छी रचना...
ReplyDeleteवीना जी आपका स्वागत है ,,,,,,,
ReplyDeleteस्वर्णकार जी ,,,, समापन सुखद ही होगा .....और आप कैसे है ,,,,
ReplyDeleteसुषमा जी आभार ...
ReplyDeletekahi ye rut pyar ki chali na jaye
ReplyDeletetum reh jana bus derpan me
kya baat hai guru.sab kuch keh dala aapne
ab to aan hi padega
bahut khoob