में तो सब सीख लूँ
तुम सिखाओ तो सही...
तुम सिखाओ तो सही...
में तो सब पड़ लूँ
तुम पड़ना सिखाओ तो सही .....
में तो सब देख लूँ
तुम दिखाओ तो सही....
में तो जग जीत लूँ
तुम मुझे जीतना सिखाओ तो सही ....
तुम मुझे जीतना सिखाओ तो सही ....
में अँधेरे से डरूँ नहीं..?
संग अँधेरे के लड़ना सिखाओ तो सही...
में भी हंश लूँ
मुझे हँसना सिखाओ तो सही ....
में भी सीने से लिपट के रोलुँ
पर सीने से शराब हटाओ तो सही .....
मुझसे भी रिश्ता है आपका ...?
कभी मेरी कमी भी, महसूश करो तो सही ....
सिंदूर फीका है तो ...?
पहचान अपने लहू की, करो तो सही .....
जाम तो रोज ही भरते हो .
कभी सपने मेरे जीवन के ,
अपनी आंखों से बुनो तो सही ...
में भी मरने का खाव छोड़ दूँ ...
मुझे जिन्दा रहने की कोई बजह बताओ तो सही ....
मुझे जिन्दा रहने की कोई बजह बताओ तो सही ....
में भी ऊँगली पकड़ के संग चलूँ तुम्हारी ..
पर संभल के चलना सीखो तो सही .....
में भी तुम्हे शाम -सबेरे पूजूँ
छवि राम सी खुद में लाओ तो सही ..
.
....B.S.Gurjar ..
बहुत ही खूबसूरत कविता है गुर्जर जी आज शब्द नहीं मिल रहे हैं मुझे इसकी प्रशंसा के लिये !
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