में एक सायर हूँ,
ये मेने कब जाना
जब तुम्हारे होटों पे मेरे अल्फाज सजने लगे
में तनहा हूँ ,
ये मेने कब जाना
जब दामन तुमने मुझसे छुड़ा लिया
में एक मोसम हूँ .
ये मेने कब जाना
जब तुम्हारी यादों से गिरा एक टूटे पत्ते की तरह
में सिर्फ एक रात हूँ
ये मेने कब जाना
जब संग तेरे में चल न सका
में एक दर्द हूँ
ये मेने कब जाना
जब दबा दिल की दूंड न सका
में सिर्फ एक खाव हूँ
ये मेने कब जाना
जब में तुम्हे हकीक़त कह न सका ....
....//...Gurjar...//.....
waah bahut khoob gurjar ji..badhai
ReplyDeleteबहुत खूब ... लाजवाब लिखा है ... कुछ गहरे एहसास लिए ...
ReplyDeleteबहुत खूब ...लिखने का अंदाज़ अलग हैं
ReplyDeleteपर वर्तनी (हिंदी लिखने में ) बहुत गलतियां हैं ...उन्हें दूर करे ...कुछ बुरा लगे तो उसके लिए क्षमा
दिल को छू हर एक पंक्ति....
ReplyDeleteanu ji aisi koi bat nahi hai ,,me bura nahi manunga aap ..mujhse badi hai or aapko mujhse jyada tajurba hai or aap mujh sikha hi to rahi hai ......dhanyabaad...aisa kabhi mt sochna ke mujhe bura lagega ......
ReplyDeletesushma ji aapka bahut -2 aabhar aap mere blog par jaroor upasthit rahti hai ,,,,,,,,,,
ReplyDeleteitni gehri soch.. kya kahein.. tarif ke liye alfaz nhi mil rahein.....
ReplyDeleteग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
ReplyDelete