ये आदत मेरी न थी ,
पर आजकल ये आदत मेरी हो गयी.....
पर आजकल ये आदत मेरी हो गयी.....
कुछ पल रोज ही खड़े रहना
आईने के सामने ,मेरी आदत सी हो गयी .....
जब से हुए हो जुदा हमसे ,
जिंदगी बंजर सी हो गयी है
क्यों न झाँकू आइना ..?
आजकल मोहोब्बत आइने से जो हो गयी...
वो एक दोर था, जब तुम मुझसे दूर हुए थे
कुछ वादे मोहोब्बत के चूर हुए थे
न चाहते हुए भी हम दूर हुए थे
वो ख़त मेने जलाये नहीं
हम उन खातों को जलाने, पे मजबूर हुए थे
उस दर्द को महसूश करो
क्यों हम इतने मजबूर हुए थे ....
लाख मना किया था तुमने
पर फिर भी तस्वीरें तुम्हारी,
फैंकने को हम मजबूर हुए थे .....
आज फिर जागी है मोहोब्बत दिल में ,
हाथों मोहोब्बत के आज फिर हम मजबूर हुए थे ..
तस्वीर आज भी तुम्हारी मेरी आंखों में है
इन आंखों से हम तुम्हे दूर कर न सके.....
शोक आजकल नया हमें लगा है ..
दर्पण से रोज बातें करना ,एक शोक सा लगा है ..
ये आदत मेरी न थी ,
पर आजकल ये आदत मेरी हो गयी.....
कुछ पल रोज ही खड़े रहना
आईने के सामने, मेरी आदत सी हो गयी .....
....///....Gurjar...///.....
ab to adat ho gayi ha meri , kisi ke rachnayein padhne ki..ab to aadat ho gayi he meri, uske kavitao ki tarif karne ki
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteआईने के सामने खड़े भी हो और अकेले भी हो ..मन की सोचो को शब्दों का रूप दे दिया ...बढिया हैं
बहुत ही सुन्दरता से आपने इस रचना को शब्द दिये हैं
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