"सिर्फ एक दुआ मांगी है कबूल करना,
भूल से भी कभी ,मुझे मेरी माँ से दूर न करना,
छीन लेना मेरे जिस्म से एक -२ कतरा लहू का ,
पर भूल के कभी मुझे माँ से दूर न करना"
(बी.एस.गुर्जर)
Sunday, September 4, 2011
'बीती रात विरहन पूछे'...
'बीती रात विरहन पूछे' आजाओ बालम अखियाँ मींचे
सिमट जाऊं किस पल वाहों में तेरी बार -२ विरहन पूछे आजाओ बालम अखियाँ मींचे
किसने लिया किसने दिया वचन 'प्रीत' का सांचा है
आई तन्हाई लिपटने मुझसे प्रीत से 'नीर' मेरे बार -२ पूछे
bahut khobbsurat prastuti Gurjar ji
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ! बिरह
ReplyDeletebah... dil kush kar diya apne.. bahut bhaut bahut acchi rachna
ReplyDeleteवाह बहुत बढ़िया .....विरह का मन का खूबसूरत वर्णन
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