वो किताबों का मोह दिन रात..?
न जाने किसको खोजती रहती हूँ!
अजीब से उलझन बनी रहती है
न जाने किस जहाँ में खोयी रहती हूँ!
कभी -२ वो निकल आते है किताबों से ..
देख कर मुझे इस हाल में
पूछते है तुम क्या चाहती हो ...
में अब न रहा क्यों आज भी मेरे 'लेख'
तुम सीने से लगाती हो ...
जब उछलते है मेरे 'लेख' तुम्हारे लवों पे
मेरे अश्कों की लहर सी बन जाती है
सोचता हूँ वो कोनसी सिहाई थी
तुम्हारी मोहोब्बत की जो
मिट के भी मिट नहीं पायी है ....
जी रही हो आज भी तुम
मेरे लेख सीने से लगाये...
में आऊंगा एक बार तुम्हे सीने से लगाने
अभी तुम्हे पुरुस्कृत करना वाकी है ...
>बी .एस .गुर्जर<
bah........bahut accha
ReplyDeleteबस एक ही शब्द ...बेहतरीन
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