न जाने कैसे मेरे मंसूवे लगते है!
चले जाते है न जाने किस की तलाश में
चले जाते है न जाने किस की तलाश में
फिर भी ठहरे से लगते है!
कदमों की हालत न पूछो..?
जब गुजरते है उनके दवीचोँ से
हर एक कदम ठहरे से लगते हे!
वे हिसाब थी उनकी वो स्याही ख़त
लाख मिटने से मिटते नहीं हे!
लाख मिटने से मिटते नहीं हे!
जब भी करते हैं उन्हें तन्हाईयो में याद
नजरें चुराये आज भी हम उनके ख़त पड़ते है!
कभी सीने से लगते हें खातों को
तो कभी बार -२ चूमते हें!
मत पूछो उस पल का आलम
किस कदर झूम उठते है!
टूट कर बिखर जाता हे आइना यादों का
जब समझ आता हे
क्यों हम आइनों में अपनी जिन्दगी खोजते है!
>बी.एस .गुर्जर<
वाह बहुत खूब जज्बात तुम्हारे दिल के ...हर शब्द दिल में उतर गया .............
ReplyDeleteकदमो की हालत न पूछो
ReplyDeleteजब गुजरते है उनके दविचो से
हर एक कदम ठहरे से लगते है
वाह वाह क्या बात है
बेहतरीन कविता
श्रृंगार रस से परिपूर्ण....
ReplyDeletebahot hi sundar aur bhav poorn abhivyakti gurjar ji.
ReplyDeletebahut hi acchi rachna
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