रूप स्वर्ण सा मन नीर सा
छलकता योवन लगे खीर सा!
मन का तोल मन का मोल लगे ढील सा
दिल में चुभोये योवन हजारों लगे तीर सा
रूप स्वर्ण सा मन नीर सा
छलकता योवन लगे खीर सा!
डगर भुलाये पथीक भटके
ज्यो -२ योवन निखरता जाये !
सो -२ नमन देवताओँ को
बिनती जो मेरी मान जाये!
में चाहू जिस सांचे में ढालना
वो उस सांचे में ढल जाये!
प्रीत हो अगर सांची मेरी
वो गीत मेरे संग प्रीत के गाये!
थाली लेकर खड़ी द्वार पे माँ
संग असुंअन के आस लगाये!
ये 'गुर्जर' बाँध ले बंधन सो जन्मो के
अगर वो इस युग में "सीत" बन जाये!.......
>बी.एस .गुर्जर<
बहुत ही सुन्दर....
ReplyDeletebahut achhi rachna
ReplyDeletebeautiful.............:)
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