कभी बुनी थी दादा ने प्यार से दादी के लिए खटिया !
आज हे बस दादी की यादें और बो आवाज चूँ - चाहट
ऐसी थी दादी की टूटी हुई खटिया
भुला दिए सब रिश्ते खून के और सोंप दी दादी को टूटी खटिया !
सिरहाने रखती क्या? था टूटा -फटा दादाजी का रुमाल
ऐसी थी दादी की टूटी हुई खटिया!
देख रही थी नम आंखे दादा की मेने कब सोचा था
ऐसी होगी तुम्हारी टूटी हुई खटिया !
खाते थे कभी संग बैठकर खाना आज
हे तो बस दादी के पास एक टूटी -फूटी थाली
जिसमे गिरती हे कभी ठंडी रोटियां
तो कभी गिरता हे सब्जी का बचा- खुचा पानी
ऐसी थी दादी की टूटी हुई खटिया !
इस लाचार से तन को संभालना बड़ा मुस्किल होता हे
जी रही किस हाल ये तो नरक से बत्तर लगता हे
एसी थी दादी की टूटी हुई खटिया !
जिस बेटे के लिए रोई उम्र भर वही दे रहा टूटी खटिया
अब हाथों में जान कहाँ हे फिर भी ममता की पहचान कहाँ हे
गुजरेगा तू भी इस दोर से याद करले तेरा भगवान् कहाँ हे
एसी थी दादी की टूटी हुई खटिया !
बस सिकायत हे तो बस दादा
से क्यू छोड़ गए मुझे अकेला क्या ये बही हे
जो कभी तुमने बनायीं मेरे लिए खटिया!
एसी थी दादी की टूटी हुई खटिया..........पवन गुर्जर ...
क्या भाव हे पवन जी , आँखे भिगो दी आपने ,,,,बस यू ही लिख्रते रहना ......
ReplyDeleteansu chalak aagaye......grt creation
ReplyDeletebhut sundar ,,bus yoan hi apni rachnao se hame badhe rakhe .....nice pavan....
ReplyDeleteBeautiful image!
ReplyDeleteHaiku Poems
sach me pavan ji bahot hi sundar abhivyakti hai....
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ReplyDeleteरोंगटे है खड़े और आँखे है भीगी .....बहुत दर्द भरा है आपकी इस कविता में ...ह्रदय को छू गई आपकी लेखनी
ReplyDeleteek number
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