"सिर्फ एक दुआ मांगी है कबूल करना,
भूल से भी कभी ,मुझे मेरी माँ से दूर न करना,
छीन लेना मेरे जिस्म से एक -२ कतरा लहू का ,
पर भूल के कभी मुझे माँ से दूर न करना"
(बी.एस.गुर्जर)
Wednesday, June 1, 2011
एक रिश्ता
कभी जागी हूँ तो कभी सोयी हूँ ,
कभी हशी हूँ तो कभी रोई हूँ !
कभी चांदनी तो कभी घनी रात हूँ
कभी नरम कालीन पर तो कभी खुदरी जमीन पे सोयी हूँ !
दूर जाऊं के पास आऊं रिश्तों की अजीव कशमकश में खोयी हूँ
बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteहाँ में नारी हूँ ...
जो हर वक़्त खामोश रहकर
रिश्तों की माला को अब तक संजोये हूँ !
नारी ह्रदय के कोमल भावों को अच्छी अभिव्यक्ति दी है आपने ...
बधाई और शुभकामनाएं !
राजेंद्र जी आपका आभार ....जो हमारे भावो को सराहा ....
ReplyDeleteइतनी सहजता से नारी मन का आंकलन...
ReplyDeleteइतना सही चित्रण इतने कम शब्दों में....
और तारीफ के लिए मेरे पास शब्द भी नहीं हैं....
***punam***
bas yun...hi..
शुक्रिया पूनम जी ..
ReplyDeletekaise batayein mano apne ek tasvir si bana di ha pavan..... sachhi mein laga mein ek nari apne ap ko aine me nihar rahi ha.........
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