मत छीनो मुझसे ख़त मेरी मोहोब्बत के आज फिर यादों में उसके खो जाने दो
उसकी मोहोब्बत की थोड़ी सी सिहाही इन खातों पर गिर जाने दो !
मेरे थिरकते होंटो को फिर एक बार गुनगुनाने दो
भले शोक से मेरे बाद मेरी मैय्यत सजा दो!
बस एक बार मुझे फिर वो ख़त अपने सीने से लगाने दो
वो पल वो घडी फिर से इन आंखों में सजाने दो !
वो आसमा की पीली धूप बुला रही है मुझे एक बार तो मिल आने दो
शायद हो उसकी एक झलक आंखों में सूरज की बस एक बार मुझे नजरे मिला ने दो!
उन रास्तों से एक बार फिर मुझे गुजर जाने दो
वो उसके पैरों से रास्तों में भरे पानी को उझल जाने दो
मत रोको मुझे उसकी रूह में उतर जाने दो
बस एक बार वो ख़त मुझे सीने से लगाने दो!
वो बाग़ वो तितली हर कलि को खिल जाने दो
बिखरी पड़ी खुशबू बागों में उसके जिस्म की उसे छुके मुझे गुजर जाने दो
ठहरो रुको जरा ये ख़ामोशी झूलों की मिटाने दो
हम आयेंगे लोट कर फिर एक साथ उन् झूलों का मन रख आने दो!
एक बार फिर उसकी महकी सांसो मे मेरी रूह को उतर जाने दो
मत छीनो मुझसे ख़त मेरी मोहोब्बत के आज फिर यादों में उसके खो जाने दो
उसकी मोहोब्बत की थोड़ी सी सिहाही इन खातों पर गिर जाने दो !
likha to mast aapne .
ReplyDeleteaccha laga..... deep feelings
ReplyDeleteवो जो ख़त तूने मोहब्बत में लिखे थे मुझको..
ReplyDeleteबन गए आज वो साथी मेरी तन्हाई के...!
***punam***
bas yun...hi...
thanks... punam jee.....
ReplyDeleteपवनजी। आपकी कविता बहुत अच्छी लगी । कृपया ""भले शोक से मेरी बाद मेरी मैय्यत सजाने दो "" लाइन का पुन अवलोकन करने का कष्ट करें
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