में न बदला तू बदल गयी
देख मेरी हालत क्या से हो गयी !
तो कहा करती थी
मुझसे एक पल भी न जी सकूंगी तुम्हारे बिना
फिर आज क्यों मुझे इस हाल में छोड़ गयी!
मेने तो बस मांगी थी तुझ से चाँद पल की खुशियाँ
क्यों तू मुझे गम हजार दे गयी!
मेने आज जब तेरी मोहोब्बत के वो
इकरार भरे ख़त क्या पड़े लिए
मेरा दर्द न जाने किस छोर तक पहुच गया
लहू तेरी वेबफाई इस तरह टपका
उन्ही मोहोब्बत के खातो पर
तेरा चेहरा बन गया !
वेबफा नहीं ,जब देखा मेने तेरा
चेहरा में सब कुछ भूल गया
बहते रहे अश्क मेरे लहू बनकर
और में फिर तुझ में खो गया!
बड़े नाजुक थे वो मोहोब्बत के धागे में न जाने
क्यों उन्हें रेशम की डोर समझ गया
अभी तो सिखाया था उसने जीना
मुझे और अभी -२ मरने के कई बहाने दे गया !...गुर्जर ....
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